भारत में साख व्यवस्था - बैंकों की भूमिका 

 

डाॅ. पदमा सोमनाथे

सहा. प्राध्यापक, वाणिज्य, गुरुकुल महिला महाविद्यालय, रायपुर (..)

*Corresponding Author E-mail:

 

ABSTRACT:

’’भारत जैसे देशों में संसाधनों के उचित विदोहन के माध्यम से प्रत्येक क्षेत्रों का विकास संभव हो रहा है एवं सभी क्षेत्रों के विकास का मुख्य आधार मुद्रा है, क्योंकि उत्पादन के प्रत्येक साधनों में पूंजी का महत्व सबसे अधिक है। जिसे बैंकों के माध्यम से पूर्ण किया जा सकता है। बैंक विभिन्न उत्पादक उद्देश्यों हेतु वित्त प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करता है।

 

KEYWORDS: साख व्यवस्था, बैंकों की भूमिका.

 

 


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शोध अध्ययन का उद्देश्य:-

1.   भारत में साख व्यवस्था के विभिन्न स्त्रोतों का अध्ययन करना।

2.   बैकों के साख प्रदाय करने संबंधी कार्यकलापों का अध्ययन करना।

3.   मुद्रा के लेनदेन में बैंको के योगदान का अध्ययन करना।

 

भारत में साख के स्त्रोतः -

भारत की 68 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में निवास करती है, जिसकी आजीविका का प्रमुख साधन कृषि है। भारत में कार्यशील जनसंख्या का 52 प्रतिशत कृषि व्यवसाय में संलग्न है। कृषकों को कृषि से संबंधित आवश्यकताओं जैसे बीज, खाद, यंत्र एवं अन्य कार्य के लिये उद्योगों को औद्योगिक विकास एवं संचालन के लिये तथा सेवा क्षेत्र की संस्थाओं को अपनी सेवाओं के विस्तार के लिये ऋण की आवश्यकता होती है।

 

भारत में ये ऋण (साख) दो स्रोतों से प्राप्त किया जाता हैः -

1. गैर संस्थागत स्रोत

2. संस्थागत सोत

  गैर संस्थागत स्रोत में साहूकार देशी बैंकर शामिल हैं। इनकी ब्याज दरे संस्थागत स्रोत से बहुत अधिक होती हैं।

  संस्थागत स्रोत में भारतीय रिजर्व बैंक, राष्ट्रीय व्यापारिक बैंक (भारतीय स्टेट बैंक, सेंट्रल बैंक आदि), गैर राष्ट्रीय बैंक, सहकारी बैंक, ग्रामीण बैंक आदि शामिल है। इनकी ब्याज दरें गैर संस्थागत स्रोत से कम होती है।

 

बैंक की भूमिका:-

भारत में बैंक के द्वारा सामान्यतया निम्नलिखित वित्तीय गतिविधियों का संपादन किया जाता हैः-

1. ग्राहक की बचत (जमा स्वीकार करना) (खाता/चालू खाता/स्थायी जमा खाता/आवर्ती जमा खाता के द्वारा)

2. ग्राहकों को ऋण एवं अग्रिम राशि प्रदान करना

1. नकद ऋण (शिक्षा/स्वास्थ्य /गृह/कार/आभूषण आदि क्रय करने हेतु)

2. बैंक अधिविकर्ष

3. अभिकर्ता संबंधी कार्यः-

1. ग्राहकों के बैंक/बिल आदि का भुगतान एवं संग्रहण

2. एक स्थान से दूसरे स्थान पर राशि का हस्तांतरण

3. बीमा प्रीमियम ब्याज किराया आदि का भुगतान

4. अंशों एवं ऋणपत्रों को क्रय/विक्रय

5. प्रतिभूतियों का अभिगोपन करना

4. विविध कार्य

1. ग्राहकों को बचत राशि का भुगतान

2. लाकर्स की सुविधा

3. आंकड़ों का संग्रहण एवं प्रकाशन

4. समाज कल्याण संबंधी कार्य

5. विदेशी व्यापार हेतु मुद्रा प्रबंधन

6. साख निर्माण एवं नियंत्रण

7. मुद्रा का निर्गमन (भारत के केन्द्रीय बैंक के द्वारा)

 

नोट:- उपर्युक्त कार्यों के लिये बैंकों के द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी की आधुनिक तकनीको प्छज्म्त्छम्ज् ठ।छज्ञप्छळए ।ण्ज्ण्डण् आदि का अधिकाधिक प्रयोग किया जा रहा है।

 

निष्कर्षः-

भारत में साख व्यवस्था में संस्थागत स्त्रोतों में बैंकों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। बैंकों के योगदान के बिना उत्पादन, सेवा, विनिर्माण, कृषि किसी भी क्षेत्र का विकास संभव नहीं। साख व्यवस्था में बैंकों के विविध कार्य जैसे जमा, ऋण, अग्रिम, साख निर्माण तथा मुद्रा के विदेशी लेनदेन, आयात-निर्यात में योगदान आदि को नकारा नहीं जा सकता। बैंकिंग प्रणाली में साख नीति द्वारा वित्तीय सुविधा के तहत ही आर्थिक विकास के विविध आयाम सफल हो रहे है।

 

संदर्भ ग्रंथ सूचीः-

1. मिश्रा, एस के- भारती अर्थव्यवस्था, हिमालया पब्लिशिंग हाऊस, नई दिल्ली 2015

2. पंत, डाॅ. जे.सी.मिश्रा,- अर्थव्यवस्था, साहित्य भवन पब्लिकेषंन, आगरा 2016

3. विष्व बैंक-विष्व विकास रिपोर्ट - 2018

4. दत्ता, रुद्र-भारतीय अर्थव्यवस्था

5. एस. चांद - नई दिल्ली 2020

 

पपद्ध पत्र पत्रिकायेंः-

1. योजना - दिसंबर 2020 नई दिल्ली

2. कुरुक्षेत्र -नवंबर 2019 नई दिल्ली

 

 

Received on 23.09.2021            Modified on 29.10.2021

Accepted on 26.11.2021     © A&V Publications All right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2021; 9(3):133-134.